भटकाव
भटकाव
बुरा जो देखूं मन कहे
मुख मोड़ प्यारे।
किस भटकाव में है तू
आँखें मूंद चल बढ़ आगे।
आत्म नियंत्रण बस में नहीं
देखूँ वही बार बार
कैसे बचूं दुविधा से।
जो देखूँ कुछ सुन सकूँ
जो सुना न जाये
कानों को बंद करूँ
या अपना लूँ हाय।
सुनूँ जो कुछ तो
सहा नहीं जाए
बिन कहे भी
रहा नहीं जाए।
दूषित कर दूँ क्या
वाणी को अपनी
इस पर लगाम भी
जो कसी न जाये।
किस भटकाव में है तू
मुख उंगली रख बढ़ चल आगे।