भीति की ओट से
भीति की ओट से
भीति की ओट से
एक संकेत दे
पास आते हुये
दूर जाओ न तुम
आसकी मंजरी
प्रेम की सहचरी
चंद्रमुख ओट मे
यूं छिपाओ न तुम
पुष्प की पंखुरी
अधखुले युग अधर
मंद मुसकानको
अब दबाओ न तुम
जलज पुष्प से
दो निमीलित नयन
स्वप्न तंद्रा भरम
यूं बनाओ न तुम
खोल दो मुक्त होकर
हृदय द्वार अब
रूप अवगुंठ मे कब तलक
यूं छिपाओगी तुम
आस मुझको भी है
प्यास तुमको भी है
रीति अपने मिलन की
निभाओगी तुम।