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खोल दो मुक्त होकर हृदय द्वार अब रूप अवगुंठ मे कब तलक यूं छिपाओगी तुम खोल दो मुक्त होकर हृदय द्वार अब रूप अवगुंठ मे कब तलक यूं छिपाओगी तुम
पुष्प की पंखुरी अधखुले युग अधर मंद मुसकान को अब दबाओ न तुम पुष्प की पंखुरी अधखुले युग अधर मंद मुसकान को अब दबाओ न तुम