STORYMIRROR

Phool Singh

Classics

4  

Phool Singh

Classics

भीष्म प्रतिज्ञा

भीष्म प्रतिज्ञा

1 min
338


दुर्योधन की जिद के आगे 

कौरव सारे थर्राए

शांतिदूत बन आएं कृष्णा

पर, दुर्योधन युद्ध ही चाहे।।


कौरव-पांडव शस्त्र तान खड़े संग

रणक्षेत्र में सैनिक आएं 

गीता ज्ञान दिए श्री कृष्णा

जिसे वक्त ने दिया छिपाए।।


धर्म युद्ध इस कर्म युद्ध में 

कहर, भीष्म के बाण बरसाए

तोड़ मिला न गांडीवधारी को 

कृष्ण भी बड़े खबराए।।


अड़े रहे जो दादा जी युद्ध में 

विजय धर्म युद्ध में कैसे पाए 

लाखों सैनिक मार चुके वो

कैसे, जीत उन पर पाएं।।


तहस-नहस देख पांडव सेना को 

चक्र कृष्ण लिए उठाए 

तोड़ दी अपनी प्रतिज्ञा भी

जो धर्म स्थापना को धरती पर आए।।


क्षमा मांगते भीष्म-अर्जुन तब

गलती कृष्ण बतालाए 

क्षत्रियधर्म निभा रहे है दोनो 

कैसे, युद्ध से पीठ दिखाएं।।


दसवां दिन था धर्म युद्ध का

शिविर भीष्म के, पांडव-कृष्ण के संग में आएं

आपके रहते कैसे जीतेंगे

जो करना धर्म स्थापि

त चाहें।।


क्षमा करना प्रभु मुझको 

लो भेद दिया बताएं 

शिखंडी था नारी पूर्व जन्म में 

नारी पर योद्धा न धनुष उठाएं।।


छिप कर शिखंडी के पीछे

अर्जुन बाण चलाए

शर- शैय्या पर मुझे गिराकर 

युद्ध से मुझे हटाएं।।


जिसकी खातिर जन्में प्रभु

वो काम को पूरा कराएं

मेरी ओर से भूल न होगी 

आप निश्चित होकर जाएं।।


ग्यारहवां दिन अस्त्र-शस्त्र

से सुसज्जित योद्धा

युद्ध कौशल भी खूब दिखाएं

अंतिम युद्ध लड़ रहे दादा जी

अर्जुन रो-रोकर बाण चलाएं।।


शिखड़ी का हुआ बदला पूरा 

सब योद्धा अश्रु बहाएं

पराक्रमी एक अद्भुत योद्धा

शर-शैय्या था आज पाएं।।


दिन ढला और युद्ध समाप्त 

योद्धा शिविर में जाएं 

गहन अंधकार में मिलने आते  

सबको वो समझाएं।।


अपने गुनाह को करते कबूल वो

ज्ञान कृष्ण जी उनसे पाएँ

भगवान होते हुए प्रभु 

उनके चरणों में शीश झुकाएं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics