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Reena Devi

Inspirational

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Reena Devi

Inspirational

बहे जल की धारा मैं

बहे जल की धारा मैं

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बहते जल की धारा मैं

जीवन का सहारा मैं

जनक मेरा है पर्वत

वसुंधरा राज दुलारा मैं।


स्वच्छंद इतराती

मंद मंद मुस्काती

सर्व जीव जंतओं की

पिपासा मैं बुझाती।


निडर निश्छल अपनी धुन में

जहां चाहतीं वहां हो आती

पर आज मैंने, ख़ुद को जो निहारा

मेरे जल में कचरा पड़ा था

टूटा था मेरा किनारा।


कुत्सित मानव ने देखो

मेरा फ़ायदा उठाया

मुझ में धोए कपड़े कभी

कभी मेरे जल से नहाया।


मेरे जल में बहायी गंदगी

मुझको दूषित बनाया।

शायद अबोध मानव को

मेरे शौर्य का भान नहीं

रहती अधिकतर शांत मैं

पर ये मेरी पहचान नहीं।


यदि मैंने विकराल रुप धारा

कौन बचाएगा मानव को

कौन देगा उसे सहारा।


जब जब भी मैंने विभत्स

रूप अपनाया है

तब तब इस धरती पर देखो

प्रलय ही मचाया है।


जागो, मानव जागो

अब भी गलती अपनी सुधारो

अपनाऊं मैं विकराल रुप

मेरी ममता को ना मारो।


स्वच्छ निर्मल जल देती हूं मैं

उस में न गंदगी डारो।


आओ आज मिल शपथ लें

हम ये गलती ना दोहराएंगे

शुद्ध पवित्र जल को हम

कभी गंदा ना बनाएंगे

मन गंदा ना बनाएंगे।


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