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Anand Kumar Tripathi

Drama

4.5  

Anand Kumar Tripathi

Drama

भारत माँ के वीर सपूत

भारत माँ के वीर सपूत

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724


दो कदमों पर, चलकर जाते,

चार कंधो पर, घर आते हैं।

भारत माँ के वीर सपूत,

बस यही कमाते हैं।


बैरक, तंबू, पत्थर का बिस्तर

खुले आसमां की छत,

ठंडी हवा की चादर।

लड़ते नींद से जब,

बंद पलके कुछ पल चुराते है।

भारत माँ के वीर सपूत,

बस आंधी नींद सो पाते हैं।


सीमा के अडिग प्रहरी,

जब दो दिन घर को जाते हैं,

हम बैठें इत्मिनान से सीटों पर,

ट्रैन मैं, वो सिर्फ खड़े दिख जाते है।

भारत माँ के वीर सपूत,

तकलीफ की छुट्टी पाते हैं।


रक्षा बंधन बिना बहन के,

देश-रक्षा में भूल जाते हैं।

बिटिया के बोले मीठे स्वर,

तार-चिट्ठी मैं ही मिल पाते हैं।

भारत माँ के वीर सपूत,

यादों से काम चलाते है।


देश रक्षा में, देश सेवा में,

करके प्राण न्योछावर।

भारत माँ के वीर सपूत,

कुछ शब्द श्रद्धांजलि ही पाते हैं।


दो कदमों पर, चलकर जाते,

चार कंधों पर, घर आते हैं।

भारत माँ के वीर सपूत,

बस यही कमाते हैं।


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