भारत भाग्य विधाता
भारत भाग्य विधाता
लिखेंगे जय गाथा फिर से
भारत भाग्य विधाता फिर से
एक दिन लहरायेंगे परचम
विश्वगुरु का हम फिर से
शिक्षा होगी हमारी जब
अपनी ही भाषा से मिलकर
चाहे भाषा कोई भी हो
जो होगी देश की लेकिन
रोजगार के अवसर भी तो
बढ़ते चले जायेंगे फिर
गुलाम मानसिकता से जैसे
उभरते जायेंगे हम
अपनी भाषा शिक्षा अपनी
और अपनी होगी पहचान
विश्वगुरु बनने का सपना
तब होगा साकार
जब हम संस्कारों को
देंगे अपनी पीढ़ी को
भेदभाव से दूर रखेंगे
नव सृजन वाहक को
जाति धर्म का भेद न होगा
आरक्षण का खेल न होगा
योग्यता होगी मापक
तब रोजगार सृजन होगा
हथियारों से लेकर
हर चीज में होंगे आगे हम
विश्वगुरु बनने की सीढ़ी
पहली निज भाषा होगी
दूसरी होगी योग्यता
समानता को लेकर हम
आगे बढ़ते जायेंगे
कर्म आधारित समाज
फिर से हम बनायेंगे
विश्वगुरु हम एक बार
फिर से बन जायेंगे