भारोत्तोलन
भारोत्तोलन
खेल मान लें भार उठाना
कभी न अपना आपा खोएं
उसने भेजा है दुनिया में
हम क्यों रोएं हम क्यों रोएं
जिसने जगत बनाया वो ही
इसका भार उठाने वाला
मगर बुद्धि पर अपनी हम क्यों
लगा लगा कर बैठे ताला
सांसें उसकी ऊष्मा उसकी
वही खिलाता वही पिलाता
वहीं दिखाता ख्वाब वही तो
हमें सुलाता हमें जगाता
रेल उसी की बने मुसाफिर
सिर पर हम क्यों बोझा ढ़ोएं
उसने भेजा है दुनिया में
हम क्यों रोएं हम क्यों रोएं
तौर तरीके उसने जो जो
सिखलाएं हैं चलकर देखें
अपने कर्तव्यों का पालन
करें न पथ के पत्थर देखें
खेल समझ कर अगर उठाया
बोझा दुःख भी सह जाएंगे
अव्वल आए तो सम्मानों
के मेडल भी ले पाएंगे
उसके निर्देशन में चलने
वाले कभी न नयन भिगोएं
उसने भेजा है दुनिया में
हम क्यों रोएं हम क्यों रोएं
अपने से तिगुने बोझे को
बल से नहीं उठा पाएंगे
कल से लेकिन काम लिया तो
उत्तम ही परिणाम आएंगे
गुरु बताए गुर दुनिया में
गर "अनन्त" वो अपनाएंगे
भरे दूध के प्याले में भी
फूल सरीखे तिर जाएंगे
आदेशों को क्यों न मानें
क्यों जीवन में कांटे बोएं
उसने भेजा है दुनिया में
हम क्यों रोएं हम क्यों रोएं।