बेटियां
बेटियां
बेटियां हैं तो घर में रौनक है।
बेटियां ही तो जीवन को रंगीन बनाती है।
हर त्यौहार को प्रफुल्लित कर देती हैं।
हर दिन को उत्सव बना देती हैं।
बेटियां हैं तभी तो हर त्यौहार त्यौहार लगता है।
घर में चार चांद लगा देती हैं बेटियां।
कुछ नहीं चाहती हैं सिर्फ आंखों में
अपने लिए दुलार चाहती हैं बेटियां।।
घर में उनके लफ़्ज़ों को भी सम्मान
मिले बस यही चाहती हैं बेटियां।
बदले में कुछ भी कर जाती हैं बेटियां।
मां बाप के हर दुःख दर्द में
खुद ही भागीदार बन जाती हैं बेटियां।
न जाने फिर कोख में ही मार दी जाती हैं बेटियां।
हर हाल में खुश रह जाती हैं बेटियां।
जब बेटियां हैं तभी तो बेटों की
कल्पना करने का साहस कर ते है।
नारा नहीं सुरक्षा का कवच चाहिए बेटियों के लिए।
शब्दों में नहीं एहसास में चाहिए बेटियां।
नहीं करनी बेटों की बराबरी।
सिर्फ नजरें चाहिए अपनत्व वाली।
प्यार का अनमोल खजाना होती है बेटियां।
दोनों घरों को ही अपना बनाती हैं बेटियां।
फिर क्यों दोनों तरफ से पराई कर दी जाती है बेटियां।
ये कैसा दोहरा मापदंड अपनाते हैं बेटियों के प्रति।
बेटियों को और कुछ नहीं सिर्फ बेटियां ही समझो
वहीं काफी है। हम बेटियों के लिऐ।