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भावना बर्थवाल

Abstract

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भावना बर्थवाल

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बचपन

बचपन

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बचपन भी कितना अलबेला होता है

महसूस न होने देता ये बड़े होने का एहसास

छोटे होते हैं तो लगते  बस असहाय से हम

धीरे-धीरे मुस्कराते हैं हम ।

परिवार हमें ही मानों निहार रहा हो

ऐसा लगता है जैसे दुनिया कितनी हसीन है

बचपन में कहां आती है समझ ये दुनिया के कायदे

सब की समझ से परे होताहै ये बचपन।

बड़ा ही याद आता है मुझे अपना बचपन।

वो दादा दादी का लाड़।

ना कभी डांट थे और ना किसी को डांटने देते थे।

बड़ा ही याद आता है बचपन।

याद आता है वो संतरे का पेड़ जिसपे चढ़ कर ना 

जाने कितने ही संतरे खाए।

ना जाने कितने ही दोस्तों को बांटे।

बड़ा याद आता है बचपन।

वो सेब के बागीचा बड़ा ही याद आता है।

कच्चे सेबों पे नमक लगा लगा के खाना।

बड़ा याद आता है बचपन।

वो माल्टे,वो निंबू वो उत्तराखंड में मेंंरा गांव।

बड़ा याद आता है बचपन।

वो ठंडा सा मौसम वो नदी वो पहाड़।

बड़ा याद आता ज्ञ है बचपन।

आहा कहां खो गया वो बचपन।

वो आसमान से फरफर पड़ता बर्फ।

मोटी सी स्वेटर मेें सिकुड़ते वो हमारे हाथ।

वो सगड ,अगेेेठी, की आग में अपने हाथ गर्म करना।

बड़ा याद आता है बचपन।

वो नन्ही सी चिड़िया वो बकरी का बच्चा।

बड़ा याद आता है।

वो उत्तराखंड में मेरा गांव बड़ा याद आता है।


थे 

  


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