बेटी
बेटी
क्यूँ समझते है बेटी को बोझ?
जिस के लिये शब्द का भी है अभाव
सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारम्भिक बीज है
बेटी है, तो कल है।
बेटी कुसुम समान है
तो कभी गंगा की धार है,
फिर उसे बहने क्यूं नहीं देते,चार दिवार में कैद है।
बेटी तो घर की शान है,
मुस्कान से अपनी घर में रौनक लाती है
फिर क्यूं सड़क मे फेंक दी जाती है?
एक घर में जन्म लेकर,दो घर को सजाती है,
कौन समझेगा उनका दुःख
जिन के लिये उस घर में भी जगह नहीं
जहां जन्म लेती है वो।
