बेटी
बेटी
एक बेटी भी पिता का मान बढ़ाती है
जब माँ की ममता व पिता की छाँव उसे मिल जाती है
बेटी के कर्मों में भी वो ताकत है
की वो चाँद जमीं पर ले आये
चूल्हे- चौके को छोड़ परे
राष्ट्र का शासन चलाये
पर कमजोर वहीं पड़ जाती है
जब परिवार उसे न समझ पाये
उसके पैदा होने पर
घर में मातम सा छा जाये
बेटी भी तो प्रभु की देन है
फिर क्यों उम्मीदें बेटे से ही
बेटी को भी मौका देकर देखो
सब कुछ कर सकती है बेटी भी
एक दिन ससुराल ही जाना है
फिर क्यों नौकरी को पाना है
छोड़ सपनों को रख दे परे
इन्होंने तो टूट ही जाना है
नौकरी न करेगी चल जायेगा
पर दहेज का जमाना है
ये बोलकर हमेशा उसका मनोबल गिराया
क्यों बेटियों को कोई समझ न पाया
क्यों बेटियों को तुच्छ समझता ये जहान है
ये नारी जाती का नहीं बल्कि
नवरात्रि में पूजी जाने वाली उस परम शक्ति का अपमान है
बेटी में भी उस दुर्गा की छवि है
उसे खुश रखने हेतु
बेटियों का जीवन संवार दो
सब खुशियाँ मिल जायेंगी बस
बेटी को भी बेटों जैसा प्यार दो।
