"बेटी बदनाम हो गई"
"बेटी बदनाम हो गई"
हर गली हर गांव की,
बात ये आम हो गई,
समाज के उसूलों से,
बेटी बदनाम हो गई,
लगा दिया पहरा उस पर,
बेडी मे कैद है,
जीना है औरों के कायदो से,
फैला यह फतवा और संदेश है,
चांद को छूने वाली,
मंदिर को छू ना पायेगी,
माहवारी के वक़्त वो
अंदर घर के ना आयेगी,
प्रेम प्यार सब इनसे दूर,
रेप हुआ तो छोटे कपडे,
मासूम चेहरे का है कसूर,
अजनबी से करी बात तो,
बदचलन वो कहलायेगी
जुबां पर रखना है ताला,
चाहे घुट घुट मर जायेगी,
घर से बाहर रखा कदम तो,
इज्जत घर की जायेगी,
अकेली गई है, आज तो,
पता नही क्या गुल खिलायेगी ?
ज्यादा लिख पढ गई तो,
निकल हाथ से जायेगी,
पराया धन हैं,पढ के भी,
ससुराल ही तो जायेगी,
धर्म, शिक्षा या परिवार,
हर तरफ से कैद है,
बुरा लगे किसी को तो,
मन से हम को खेद है,
हम तो बोलेंगे विरोध मे,
खडे होँगे प्रतिशोध मे,
बहुत हुआ सहन,
बेडियाॅ काटी जायेगी,
जहाॅ लगी हैं रोक,
वहीं पे बेटी जायेगी,
सबरीमाला हो या तीन तलाक,
साइकिल हो या हवाई जहाज़,
तिहाई नही आधा हिस्सा,
जब संसद मे दिया जायेगा,
हर नियम मे रख के आगे,
इनका मानस माना जायेगा,
गांव से दिल्ली तक,
घर से गली तक,
हाथ मे इनके डोर हो,
नही किसी से कम ये,
प्रचार चॅहुओर हो,
संस्कारो की कैद से छूट कर,
ये नये आयाम बनायेगी,
भरी पंचायत मे जब यह,
कन्धे से कंधा मिलायेगी।
