"प्रीत के दिन"
"प्रीत के दिन"
आये हैं प्रीत के दिन,
रुत ये कुछ निराली है,
क्या करें कैसे करें बयाँ,
मन में यह हैरानी हैं,
खोया हैं कोई कागज़ पर,
उतारने जज़्बातों को,
कोई उलझा फ़ोन पर,
लिये हुए कुछ बातों को,
हर तरफ बिखरे गुलाब,
आम हैं इज़हारे इश्क़,
कहीं हुआ है स्वीकार,
कहीं रिजेक्शन का रिस्क,
हुए हैं हसीन,
इश्क़ के साल,
मग्न हैं बुड्ढे,
खोये बच्चे और जवान,
फिजाओं में फैली है,
चाहत फ़िज़ा बहार,
घूम रहा हर कोई,
हाथ में लिए लाल गुलाब,
खामोशी से इश्क़ बताते रहे,
हज़ार तरीकों से जताते रहे,
विश्वास की स्याही से,
कागज़ को सताते रहे,
कह रहा हैं कोई,
बाते ये रूहानी हैं,
धोखा हैं प्रीत बस,
बाते ये किताबी हैं,