कोरोना माहमारी के दौर में ,
क्या खोया और क्या पाया ?
ये सोचने लगे जब बैठ ,
एक नया अंतराल समझ आया |
पाप धरती पर बढ़ गया था ,
इसलिये जाने चली गईं ,
बदलाव लाना जरूरी था ,
तभी कुछ साँसे थम गईं |
खो गई आजादी जहाँ ,
वहीं नई रचनायें बुनी गईं ,
घर की चारदीवारी से भी ,
सपनो की आवाजे सुनी गई |
: transparent; font-size: 16px;">कुछ नए नियम पड़े निभाने ,
मुँह पर मास्क हाथों में दस्ताने ,
छह गज दूरी हुई ज़रूरी ,
अपनो से भी लगे कतराने |
पाया स्वच्छ होने का एहसास ,
खोया पंख फैलाने का आभास ,
सीखी माहमारी की मारामारी ,
जिससे बचने लगी दुनिया सारी ||