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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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बदलाव

बदलाव

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कोरोना माहमारी के दौर में ,
क्या खोया और क्या पाया ?
ये सोचने लगे जब बैठ ,
एक नया अंतराल समझ आया |

पाप धरती पर बढ़ गया था ,
इसलिये जाने चली गईं ,
बदलाव लाना जरूरी था  ,
तभी कुछ साँसे थम गईं |

खो गई आजादी जहाँ ,
वहीं नई रचनायें बुनी गईं ,
घर की चारदीवारी से भी ,
सपनो की आवाजे सुनी गई  |

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: transparent; font-size: 16px;">कुछ नए नियम पड़े निभाने ,

मुँह पर मास्क हाथों में दस्ताने ,
छह गज दूरी हुई ज़रूरी  ,
अपनो से भी लगे कतराने |

पाया स्वच्छ होने का एहसास ,
खोया पंख फैलाने का आभास ,
सीखी माहमारी की मारामारी ,
जिससे बचने लगी दुनिया सारी ||






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