बढ़ते कदम
बढ़ते कदम
रास्तों को जोड़, कांटों को तोड़,
आसमान को हम छूने चले हैं।
बदलने चले हैं जमाने को,
हम आगे बढ़ने चले हैं।
दोस्तों इरादे नेक हों तो,
मंजिलें कदमों तक आती हैं।
चाहे कोई भी मुश्किलें आंयें,
खामोशी से रास्ता छोड़ देती है।
जिदंगी हर मोड़ पर मारेगी डंडे,
पर तुम गाढ़ देना सफलता के झंडे।
