बचपन के वो सुहाने पल,
बचपन के वो सुहाने पल,
बचपन के वो सुहाने पल
मौजों के वो गुनगुनाते पल,
न कोई फिक्र, न कोई शिकवा,
क्या खूबसूरत थे वो निराले पल...
थी न कोई जिम्मेदारी, न था कोई गम,
खुशियों का बस दामन था, कैसे भूले हम,
जवाबदेही से न था वास्ता, न था कोई संग,
फिर वो दिन भी आया, जब हुआ सभी कुछ भंग...
अब वो दिन न आयेंगे, सबकुछ भूल जायेंगे,
बस याद यही है, कि जीवन में कुछ कर पाएंगे,
छोड़ सब रिश्ते-नाते, अपना पथ हम बनाएंगे,
मार्ग प्रशस्त कर, खुद उस पर चलते जायेंगे...
समय भी चलता अपनी ही गुमानी में,
हवा भी बहती अपनी ही मनमानी में,
हमें न थकना, है आगे बढ़ते ही रहना,
चलते रहना, अपनी धुन की रवानी में...
जीवन मिला हमें प्रभु से, करो इसका सम्मान,
भूल के करो न तुम उनका यूँ अपमान,
बचपन को भूल बन्दे, कर तू अपना उत्थान,
विजयश्री की ओर, कर ले तू अब प्रस्थान...
