बचपन के दिन
बचपन के दिन
बचपन के दिन कितने सुंदर
रातें भी कितनी सुहानी थीं
दादा-दादी के संग जब
परियों की कहानी थी।
न था अपना घर बड़ा
न कोई घोड़ा-गाड़ी थी
दादा-दादी के कंधों पर
होती अपनी सवारी थी।
पूरी होती थी मेरी हर चाहत
हसरत कोई न रहती बाकी थी
लाख खता करता था फिर भी
दादी सीने से लगाती थी।
घर-आंगन में भर जाती थी
कितनी खुशियां
जब दादी स्नेह के मोती लुटाती थी।
त्योहारों पर मिलजुल कर हम
कितना मौज मनाते थे
दादा-दादी हमको
खिलौने नए दिलाते थे।
पर अब वो दिन रात कहां
बचपन वाली वो बात कहां
महलों सा अब घर अपना
पर अपनों का साथ कहां।
