बारिश संग कागज की नाव
बारिश संग कागज की नाव
बारिश और कागज की नाव
बूंदों की झड़ी, आकाश से आई,
धरती ने चादर हरियाली की बिछाई।
मन में उमंग, चेहरे पर हंसी,
बचपन की यादें, फिर से ताज़ी हुईं।
कागज की नाव, हमने बनाई,
नदी नहीं, गलियों में चलवाई।
बचपन की यादें, फिर से जाग उठीं,
नाव की सवारी, बारिश की गोद में बसीं।
छोटे-छोटे सपने, कागज पर लिखे,
नदी के संग बहने लगे।
हर बूंद की धारा, नाव को संभाले,
मन के आँगन में, खुशियों के दीये जले।
बारिश की बूँदें, मस्त पवन के संग,
नाव हमारी, चली मस्त मगन।
भीगे हुए रास्ते, पगडंडियों की सैर,
कागज की नाव, जैसे बनी परी की बग्गी।
बचपन की यादें, फिर से लौट आईं,
मन में उमंग, चेहरे पर रौशनी लाई।
कागज की नाव, और बारिश का मेल,
भाई साहब के साथ किया वह खेल
हर दिल में जगाए, खुशियों का खेल।
बचपन के खेल, बारिश की धुन,
नाव की सवारी, जैसे कोई जादुई गुन।
आज भी जब देखूं, बारिश की फुहार,
मन में बसती है, कागज की नाव की पुकार।
तो आओ मिलकर, बचपन को जी लें,
बारिश के संग, फिर से खुशी की नाव तैरें।
कागज की नाव में, भर लें सपनों का जहां,
हर बूंद में बसता है, हमारे बचपन का समां।
आओ जी भर के हम बचपन को जी ले।
याद वो प्यारे लम्हे कर ले।
बारिश संग कागज की ना फिर से तैरा ले।
