बाप
बाप
वो जानता है ऐबों को मेरे
फिर वो नज़रंदाज़ करता है।
वो शायद इंसान है ही नहीं
ख़ुदा है वो खुद
इसीलिए वो मुझसे प्यार करता है।
थाम लेता है वो मुझे
हर ठोकर पर अक्सर
अपनी चोटों को भी वो
नज़रंदाज़ करता है।
मेरी फिक्र है उसे इतनी
कि खुद अपनी फिक्र को
वो दरकिनार करता है।
होंगी कुछ हसरतें उसकी भी
पर मेरी हर हसरत को ही
वो अपनी आखिरी हद मान लेता है।
वो प्यार अपना
कभी जता नहीं पता,
बस हक़ से मुझे
अपना गुरूर मान लेता है।
कैसे बनाऊँ मैं मूरत उसकी
और पूजूँ किसी मंदिर में ?
वो बाप है मेरा
वो मेरे दिल में रहता है।