STORYMIRROR

अनिल कुमार निश्छल

Abstract

4  

अनिल कुमार निश्छल

Abstract

बाँटा हमने ही है

बाँटा हमने ही है

1 min
425

तुझमें राम दिखे हैं, मुझमें हैं रहमान

मिट्टी के बुत को, बस मिट्टी ही जान


भारत की धरती प्रेम नेह का पालना

प्रेम रहे सौहार्द बसे यही मेरा अरमान


जात पाँत मज़हबों में हमने ही तो बाँटा

और बनाये कितने कैसे फिर भगवान


इंसान को इंसान की नजरों से देखें

इंसानियत की फसलें बोये फिर इंसान


औलादें हैं उसकी और बनाते उसको

आपस में हम लड़कर बन जाते हैवान


सारी दौलत, शोहरत का कोई नहीं ठिकाना

फिर भी न जाने किस बात का करें गुमान


दो पैर, इक दिल, दो आँखें दीं हैं सबको

हाँ ! लेकिन दो हाथों से बन जाते महान।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract