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बाल मजदूर

बाल मजदूर

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वो उठते हैं 

हर रोज मुँह-अंधेरे

सूरज से भी पहले !


यही है फ़र्क 

हम में, उनमें,

हम रोते हैं 

मगर वो हँस के

सह लेते हैं।


वे जाये कामकाज पर

और हम विद्यालय जाये

रोजीरोटी को तपते दिनभर वो

हम पकी पकाई खाये।


मज़दूरी करते हो जाती 

कब सुबह से शाम

समझ नहीं आती

शिक्षा उनके नसीब में कहाँ ?

मज़दूरी ही उनकी थाती।


यदि है कुछ है उनके हिस्से !

तो सिर्फ़

काम और काम,

वहीं हम सुविधाओं में रहकर

करते ख़ूब आराम।


जिन हाथों में होनी थी किताबें

उनमें होते हथौड़े हैं !

आँखों के सपने सारे

भट्टियों में पिघलने छोड़े हैं।


है दुखद ये सोच,

कि..हमने सोचा नहीं कभी उनको

क्या मिलता है पूरा खाना,

नींद, चैन, कपड़ा तन को ?


सोचो !

क्या हो जो अगर,

उनका जीवन

हमको मिल जाये !

चलो करो कुछ उनके लिये,

कि वो भी हम सब जैसे

बन पायें।


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