Lisha Sachdeva

Abstract

4.6  

Lisha Sachdeva

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बागे- बहार च

बागे- बहार च

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गम तो आते जाते रहते, इस गम का यारो कया करना ।

बुरा बुरा है,भला भला है,यही तो बस अब पता है करना।

जीने ना देते जो तूफा,उनसे लड़ के आगे बढना।

मजिंल दिख जाए जब आगे सोच समझ के 

तब दम भरना ।

   काश कोइ करछी हो ऐसी

दिल का पतीला कर दे खाली।

जो मन हो बस रखें उसको

जो ना भाये बहा दे नाली।

यादो मे बस फूल न खिलते,

कुछ कचरा भी रह जाता है,

बस बागे- बहार ही मिलती

सांसो की कोइ लौ न बुझती।


काटों पे ना धयान दे पगले

फूलो की तू खूशबू सूंध

भूल जाएगा सारे गम 

जब जाएगा तू उसमें रम।



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