बुलंद
बुलंद
सहारे ना ढूंढो नजारे ना ढूंढो, खुदी को बुलंद कर बहाने ना ढूंढो
फिकर से ही तो फिकरे भरते हैं दम, गिरेबान में अपने फसाने ना ढूंढो।
कभी तो तुझे भी मिलेगा वह मंजर, जिसे तूने चाहा निशा करके देखो
बना लो वह कश्ती जो डूबे ना पल में, कभी मोतियों को सजा कर तो देखो।
