अपने फिर भी अपने हैं
अपने फिर भी अपने हैं
पूर्व जन्म का पुण्य कर्म ये, मिले हो तुम यूँ हमसे
अनजाने से अपने बने हो, दोष भूलकर तन-मन के।
मात-पिता कभी भाई-बहन बन, अपनाते हमें हर ढंग से
न जात-धर्म ही बीच में आती, रक्त के संबंध तन-मन के।
मन के बोझ को हल्का करते, सही मार्ग दिखाते शुद्ध मन से
कभी वर-वधू के रूप में आते, कभी आते शत्रु-मित्र बन के।
त्रुटियाँ हमारी हमें बता, अवगुण छिपाते हर जन से
तारीफ हमारी सभी से करते, ढाल बन सामने खड़े हर संकट के।
विकट परिस्थितियों से हमे बचाते, साथ निभाते पूर्ण समर्पण से
प्राणों तक को हम पर लुटाते, लहू भी बहाते हमारे अंग बन के।
मुद्दतों की तपस्या से मिलते है सब, दूर न करना कभी उन्हे मन से
न नीचा उनको कभी दिखाओं, तौल हालत को ज्ञान धन से।
खाली जिंदगी रंगो से भरते, हंसी-मज़ाक कुछ दुख-दर्द से
अपने फिर अपने होते, हालत जैसे हो आज उनके।
उम्मीद टूटी तो ताल्लुक टूटे, रिश्ते बने न हैसियत से
अपनी गलतियाँ हम जानते, तालियाँ ना बजती एक हस्त से।