अपने हिस्से के आसमान
अपने हिस्से के आसमान
बीते वर्ष में ..उन्मुक्त पक्षी समान ...अपने हिस्से का आसमान बटोर रही थी...,
पर कल्पनाओं के बारिश में सपनों की नैया मझधार में फंसती हुई समझ आई, और
जीवन समर में बेहतरीन योद्धा बनने का पाठ पढ़ा गई...
खैर... नए साल के साथ
कल्पनाओं के सागर से निकल...
यथार्थ की जमीन पर ,
उन्माद और अवसाद से निकल..
उत्साह और उमंग की ओर
बढ़ चलती हूं...
अब अपने हिस्से के आसमान में..
अपने रंगो का इन्द्रधनुष बुनने..
