पुरुष प्रधान समाज
पुरुष प्रधान समाज
पुरुष प्रधान समाज की नींव तब रखी थी
जब एक राजा के चाहने पर ,हाय!सीता प्रिय जली थी,
जब भरी सभा मै वीर सभी अपनी नाक बचाने बैठे थे
एक अबला की दुराचारिता को ये बलिशाली क्यूँ सहते थे
नारी घिसती रही एडियां सदियों तक एक बराबर आने को,
भारत ने फिर कुचला सपना, महिला आरक्षण लाके जो,
क्यूँ महिलाओं से ये आधुनिक भारत इतना डर जाता है
जान कर भ्रूण मै कन्या, क्यू भ्रूण गिराया जाता है
है सवाल इस समाज से कुछ नारी अस्तित्व रखवाले के
वस्तु बना क्यू हर बार गया नारी को बेचा?
क्यूँ खीच दी सपनो के संसार मै कुंचित सी एक लक्ष्मण रेखा?
क्यूँ राक्षस ने देवी को, भोग वस्तु नज़रों से देखा?
नारी ज्वाला की गर्मी को यह समाज ना सह पाएगी,
रूप लिया जो काली का तो हर गर्दन कट जाएगी,
विनाश ,त्राहि ,सब रक्तपात हो जाएगा
फिर भी क्या ये भारत पुरुषप्रधान कहलाएगा???