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Jitendra Parashar

Inspirational

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Jitendra Parashar

Inspirational

अपना बचपन

अपना बचपन

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बेचैनी से ढूढ़ रहा था वो

अपना बचपन

अरसे बाद आया अपने गाँव

भाग चला पकड़ने

पीपल को

जो करते-करते इन्तज़ार

मर चुका था

फिर भाग कुएँ  की तरफ

जहाँँ खेला था बचपन

चिकने पत्थरो से

शरारत ठन्डे पानी के साथ

पर वक़्त ने मूँद दिया उसे भी

अनहोनी के डर से

भागा कच्चे रास्तों

खेतों की तरफ

जाया करता था जहाँ

बैलग़ाडी से

अब्बा के साथ

पर सब, सब चले गए

बस एक आस के साथ

भाग चला

अपने घर की ओर

पर ये क्या

गायब था घर

थी एक शानदार बड़ी इमारत

बैठ गया घर के आगे

सर पकड़

जैसे लुट गया सब

छोड़ गए अकेला उसे

सबसे उम्रदराज़ था वो अब यहाँ।


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