Kavita Kaushik

Abstract

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Kavita Kaushik

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अंतर्मन

अंतर्मन

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मन के गुदगुदाने से 

दिल के खुश होने से 

हमारे वो रिश्ते नाते हैंं 

जिससे हम ऊबर नही पाते हैंं           

इसके लिये पारिवारिक अनदेखी 

आखों की हेरा फेरी सी 

टिमटिमाते तारों सी 

जिंदगी की बागडोर हिला देते हैंं 

मन ही मन बुद बुदाना 

अनकही में बहुत कुछ कह जाना 

इसके साथ ही अपने 

सपने रच लेते हैं 

दिल की खुशी के लिये 

प्रेयसी की झलक पाने को 

रिश्तों की अनदेखी कर 

महफिल सज़ा लेते हैं 

मन और दिल की 

दोस्ती के नाम पर 

चले जाते हैं 

और फिर भी मन और दिल 

के हाथ अपनी बागडोर थमा   

देते हैं 

मन और दिल सुगबुगाता 

जीवन को नये रंगो से भर देते हैं 

सुख दुख कि खरगोशी या

जीवन को सार्थक कर देते हैं ,सार्थक कर देते हैं 

      


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