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Kavita Kaushik

Abstract

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Kavita Kaushik

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रंगों से सीखो

रंगों से सीखो

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बेरंग कागज में रंग भरा

 वह ऐसे मुस्काए

 जैसे किसी को

अपना प्यार मिल जाये


 कला उकेरी कागज पर

चित्रण हो गया पूरा

बिन रंगो के ऐसा

 दिखे जैसा हो अधूरा


  मां की तस्वीर

 जब मैंने कागज पर उकेरी

 वह तस्वीर बिना रंगों की

 भी हो गई पूरी

हुआ यूं कि 

 उस में ममत्व का

 रंग भर आया

  पूरी हो गयी

तस्वीर ऐसे जैसे

मां का हो साया

 

उनकी तस्वीर

जब बनी

ब्रश रह गया हाथों में

पूरी हुई बिना रंगों की

के जैसे प्यार का रंग समाय।


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