अंतिम पायदान
अंतिम पायदान


पहुंचकर जीवन के अंतिम पायदान पर
जब पलटकर देखता हूँ सीढ़ी दर सीढ़ी
तो कई उत्साह के रंग और कुछ स्याह यादें पाता हूँ
रोमांच से भर जाता है मन और ह्रदय फिर अगले ही पल।
व्याकुल और अधीर हो उठता हूँ
कई सपने जो देखे थे जीवन के आरंभिक पायदान पर
वो जिंदगी की सीढ़ियों के बढ़ते क्रम में फींके पड़ते गए
नई दुल्हन के हाथों से जैसे धीरे धीरे उड़ जाते हैं मेहंदी के रंग।
और स्मृति में रह जाती है केवल रतजगे की धुंधली तस्वीर
कई स्मृतियाँ एक साथ उमड़ने लगती हैं जिनमें
दूर से आती माँ की आवाज और मैं पलटकर चिल्लाता हूँ 'आया माँ,
पिताजी की साइकिल की घंटी की ट्रिन ट्रिन का ख्याल उल्लास से भर देता है।
कि मैं कैसे दौडकर थैला टटोलता था मीठे अमरुद की चाह में
दूध वाले का भोंपू, नानी के गाँव की बस की होर्न की आवाज
जिसे सुनकर हाथों से थैले कों घसीटते भागता था आवाज की तरफ
शाहीन* की पायल और चूड़ियों की झनकार।
बच्चों की किलकारियां और ना जाने क्या क्या
फिर अचानक आ जाता हूँ वास्तविकता के फलक पर
और बैठ जाता हूँ जीवन के अंतिम पायदान पर ये सोचते हुए कि
मेरा सफर खत्म हो रहा है या पूर्ण ?