दुनिया का पहला पेड़
दुनिया का पहला पेड़
मेरे बाबा ने सुनाई थी मुझे दुनिया के पहले पेड़ के जन्म और मृत्यु की कहानी
धरती कि इस कोंख से जब दो पत्तियां बाहर आई थीं
हर एक जीव ने मंगलगान गाया था
बादलों ने शगुन में जल चढ़ाया था
भूख से व्याकुल एक जीव ने ललचाई नजरों से देखा था
नर्म हरी पत्तियों को और ना जाने क्यों फिर उसने भूख चुन ली
दुनिया का पहला पेड़ बड़ा होता गया
और उसके बढ़ने के साथ ही बढ़ने लगा उसका कुनबा
धरती की तपती देह शीतल हो चली थी
पक्षियों कि चिंता अब पेड़ ने अपने सर ले ली थी
जिस जीव ने भूख चुना था आज उसका फल उसे मिलने लगा था
वह अपने पूरे कुनबे के साथ भरपेट भोजन करता था
मानो जैसे पेड़ सबका पालनहार हो गया हो
फिर एक दिन सुनाई दिया पेड़ का रुदन
एक अजीब देह का जीव पेड़ को बेतहासा मारे जा रहा है
और देखते ही देखते पेड़ अपने धड़ अलग कर दिया गया
उसके बाद तो जैसे पेड़ों कि मौत का सिलसिला चल पड़ा
एक-एक कर खत्म होते जा रहे थे पेड़
और उनके साथ खत्म हो रहा था जंगल का अस्तित्व
धरती कि देह फिर गर्म हो चली थी
बादलों ने मातम करना आरम्भ कर दिया
चारों और त्राहि त्राहि मच गई
किन्तु वो विचित्र देह वाला जीव नहीं रुका अब तक
अब भी बदस्तूर जारी है पेड़ों कि हत्या
और हत्यारे एक दिन खत्म कर देंगे सब कुछ
धरती कि देह और देह कि उत्पादकता
