अनोखा सपना
अनोखा सपना
सपना होता है एक अनमोल विचार ।
जिस पर होता है सबका अधिकार।
पापा बोलते, "बनो तुम डॉक्टर।"
तो मम्मी बोलती, "नहीं,नहीं, इंजीनियर।"
मेरे मन की बात तो कोई ना समझते।
बस अपनी-अपनी ख्वाहिशें मेरे आगे पेश करते।
मेरी तो इच्छा है कि मैं मनोवैज्ञानिक बनूंँ।
और हर पीड़ित की पीड़ा को हर सकूँ।
लोगों से कुछ तो पता कर सकूंगी मैं उनके तनाव।
इतना तो मुझे मेरे ऊपर है विश्वास लाजवाब।
यही बना मेरा सपना जब से मैंने देखा एक भैया को।
मैं बनकर डॉक्टर पार करूँ ऐसों की नैया को।
बहा दिए थे उस दिन मैंने यमुना और ब्रह्मपुत्र।
रच दी थी मैंने उस दिन पूरी की पूरी शास्त्र।
मम्मी-पापा सभी ने पूछा कि क्या हो गया है तुझे।
मैंने कहा कुछ नहीं हुआ है आज मुझे।
वह तड़पते भैया थे मानसिक रूप से विकलांग।
आँसू ने भगवान से की मनोवैज्ञानिक बनाने की मांग।
है मेरी इच्छा तो बहुत ही अनोखी।
बन जाऊंगी एक दिन मनोवैज्ञानिक चौखी।
सभी ने मनोवैज्ञानिक बनने का दिया मुझे नया जोश।
लेकिन कुछ ने यह सुनकर किया था मुझको खामोश।
सपने तो बनाते हैं देखते हैं बहुत से दुनिया के लोग।
लेकिन कुछ ही उन सपनों मैं कर पाते हैं पूरा योग।
जो मेरे सपने हैं मैं निश्चित ही करूंगी पूरा।
नहीं तो मेरा जीवन समझ लो रह गया अधूरा।
निश्चित ही मैं बनूंगी सहृदय मनोवैज्ञानिक महान।
मानसिक रोगों के कारण नहीं जाएगी कभी किसी की जान।
मानसिक रोगों के कारण नहीं जाएगी कभी किसी की जान।।
