अनोखा चित्रकार
अनोखा चित्रकार
खुदा की चित्रकारी का क्या कहना
लगता है जैसे सब हो इक सपना
फल सब मीठे पर स्वाद अलग फूलों के रंग कितने चटख
नदियाँ कल -कल बहती जाएं चट्टानों से भी न घबराएं
हर भरे जंगल कितने प्राणियों का जो हैं
घर इक इक पेड़ जो प्राण वायु से है लबरेज
निशुल्क हमारी सांसों का संचालन करता जाये
वाह विधाता तेरे उपकारों को कहाँ तक गिनायें ।
मिट्टी की जादूगरी तो देखो इक बीज को पेड बना दे
इक बीज से बन जाएं कितने अनंत फल
सारे मौममों का समय -समय पर बदलना
भरता खुशियों से जीवन को कितना
सब मनुष्य बनाये तो इक जैसे पर रंग रुप में अंतर है वैसे
वाह तेरी चित्रकारी का क्या कहना बनाई बहुत खूब तूने हर इक रचना।
