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Pratik Dhumal

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Pratik Dhumal

अनकही दास्तां

अनकही दास्तां

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क्यों न कर पाया मैं बात तुमसे,

क्यों जुड़े जज़्बात तुमसे।

न जानूँ, न पहचानूँ तुम को,

फिर भी क्यों है आस तुमसे।।


देख चेहरे पर तुम्हारे,

छाई है रौनक सदा।

सुकून दिल को है दिलाती,

है वही हर इक अदा।।


मासूमियत है जो तुम्हारी,

मुस्कुराहटों में छिपी।

है आईना दिल का तुम्हारे,

आँखों में है जो दिखा ।।


है बात नज़रों से हुई,

क्यों ना हुई वो लफ्जों से।

चुप थे जो दोनो, पढ़ के भी,

है नज़रों मे था जो लिखा।।


न जानता मैं था कि ये,

चंद दिन कि बात है।

जा, रहे हो दूर जो तुम,

क्या कहूँ जज़्बात है।।


जज़्बात है जो दिल के,

वो न अब कभी कह पाऊंगा।

अब क्या ही होगा कहने से,

ये सोचता रह जाऊँगा ।।


है कशमकश क्यों हो रही

क्यों ये दिल भर आया है।

क्यों डर है खोने का मुझे,

अब तक न मैने जो पाया है।।


है आया ऐसा मोड़ की,

जुदा हुआ है रास्ता।

है रह गई अधूरी जो,

अनकही हमारी दास्तां।।


फिर भी रहेगी याद वो

मुस्कान मासूमियत भरी।

आँखों की बातें दिल के

कोने में जतन कर जाऊँगा।।


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