अनचाही बेटियां
अनचाही बेटियां
कभी कोई जमाना था जब बेटियां अनचाही होती थी
उनके आने की आहट से ही
तिलमिलाहट, उबकाई होती थी
कोख में ही मार देते थे उन्हें
या फिर पैदा होने पर गला घोंट देते
इतना भेदभाव किया जाता था उनसे
कि उन्हें खुद मरने को मजबूर कर देते
बड़ी जीवट वाली होती हैं बेटियां
हर कदम संघर्ष करतीं रहतीं हैं
कांटों के बीच रहकर के भी
गुलाब की तरह खिलती रहतीं हैं
अपनी खुशबू से महकाती हैं घर आंगन
अपनी सेवा से रखतीं हैं खुश सबको
अपने त्याग और तपस्या के कारण
वह "तुलसी" की तरह प्रिय है रब को
उसके श्राप का परिणाम
आज फलीभूत हो रहा है
अपने पापों के कारण मर्द
आज "कुंवारा" ही रह रहा है
