ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है
दिल जिसे चाहे वो किसी और का क्यों होता है
जिस्म से रूह तक का फ़ासला जो हमने पल भर में तय कर लिया
वो तय करना उनके लिए गैर-मुमकिन क्यों होता है
जिनके तबस्सुम पर मर मिटे हम एक ही नजर में
उस एक एहसास को समझना उनके लिए दुश्वार क्यों होता है
जिस दिल को संभाले रखा था एक उम्र से हमने
उसे एक ही मुलाकात में दे देना इतना आसां क्यों होता है
हमारा दिल तो फ़क़त उनके लिए धड़कता है लेकिन
उनके दिल का हमारे लिए बंजर हो जाना इतना सहज क्यों होता है
वो कहते हैं इश्क़ नहीं करते हमसे
और हमें सिर्फ उन्हीं की रूह की रूहानियत से इश्क़ क्यों होता है
जो जिंदगी में नहीं, जिंदगी बन गए हों
उनके सफ़र-ए-हयात में हमारी कुछ भी अहमियत ना होना इतना सहल-उल-'अमल क्यों होता है
बिना मांगे ही जिसे उम्र भर प्यार करने का कौल दे दिया हो
उसे एक पल भी हमारे साथ गुज़ारना नागवार क्यों होता है
रूह जिसके साथ उम्र भर रहने की तमन्ना करती हो
रफ्ता-रफ्ता उनका हमसे रुखसत हो जाना इतना आसान-तर क्यों होता है।

