ऐ नारी अब जाग तू
ऐ नारी अब जाग तू


बंदिशे तो लाखों हैं, पर तू उनको तोड़ दे
जो भी बाधा आये डगर पर, अब तू उसको मोड़ दे,
जगा कर अग्नि हिम्मत की, बस तू आगे बढ़ती जा
जो भी दरिंदे आयें डगर पर, उनको दफ़न करती जा,
गरज कर अम्बर के जैसी अपने दामन को कर बेदाग तू
ऐ नारी अब जाग तू
झटक दे इस परम्परा की बेड़ी को
लड़ने के लिए इस दुनिया से,जमा ले अपनी एड़ी को,
आत्मबल पैदा कर खुद में,
और शौर्य का इतिहास मंडित कर
इन मूर्खों की रुढ़ियों को, अब आगे बढ़ कर खंडित कर,
जो भी कड़ी कमजोर है, उसे अंगारों में भस्म कर दे
अ
पने वीर बल की, पैदा नयी रस्म कर दे,
अन्याय के खिलाफ उठी इस आवाज़ की,
अब प्रबल कर आग तू
ऐ नारी अब जाग तू
जो कमजोर समझे तुझ को, उसके लिए तेज़ तलवार बन
लड़ने के लिए इस दूनिया से, बना ले फिर इक बार मन,
ऐसा प्रहार कर की इन मूर्खों की सारी जड़ें हिल जाएँ
देखकर तेज तेरा, इनकी आकांक्षा मिट्टी में मिल जाएँ,
अपनी नयी ज़मी, पैदा नया आसमान कर
तोड़ कर रस्मों का पिंजरा, इन पंखों में नयी उड़ान भर,
तू खुद ही काफ़ी है अपने लिये, बन खुद का अद्वितीय चिराग तू
ऐ नारी अब जाग तू।