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savita garg

Abstract

4  

savita garg

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ऐ मुसाफिर

ऐ मुसाफिर

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जिंदगी कभी आसान नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जो कठिन ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी बेरंग नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जो रंगीन ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी भी बेमकसद नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ कोई मकसद ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी भी बेमौसम नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ कोई मौसम ना बदले

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी बेवक्त नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ अपनों के लिए वक्त ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी बे इम्तिहान नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ कोई इम्तिहान ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी हमेशा गुलाबों सी मुलायम नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहां काँटे ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी हमेशा निराशा नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ आशा की किरण ना हो

वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी कभी नफरत करने वालों की

मोहताज नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ मोहब्बत करने वाले

अपने ना हो वो जिंदगी नहीं होती।


जिंदगी हमेशा तुम या मैं नहीं होती,

ऐ मुसाफिर जहांँ हम नहीं

वहांँ जिंदगी नहीं होती।


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