Tushar Mandhan

Abstract

3  

Tushar Mandhan

Abstract

ऐ मानव !

ऐ मानव !

1 min
284


ऐ मानव !

ऐ मानव, तू अब तो संभल जा। 

मेरे दुखों को तू और मत बढ़ा,

यदि कहता है मुझे 'धरती माँ'

तो पहले मेरी सच्ची

संतान बन के दिखा !


विकास की पट्टी को बांध

मत बन अँधा,

वो ही बनेगा एक दिन तेरे

गले का फंदा। 

मैंने तुझे जन्म दिया, 

तू मुझ में ही मिल जाएगा। 

पर क्या तू मेरा शोषण कर,

मुझसे नज़रे मिला पाएगा !


जल्द आएगा वो दिन 

जब तू अपने

विकास- जाल में

खुद ही फँस जाएगा। 

तुझे सजा देने एक दिन,

माँ का हाथ उठ जायेगा। 

उस दिन तुझे होगा पछतावा,

जब अपने कर्मों का फल

पड़ेगा चुकाना !

यदि कहता है मुझे 'धरती माँ'

तो मेरी सच्ची संतान

बन के दिखा !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract