अगर मैं होती
अगर मैं होती


अगर मैं होती पंछी, मुझे कैद न कर पाते,
मैं स्वच्छंद पंख फैला उड़ जाती।
अगर मैं होती सूरज, मेरा तेज न सह पाते,
पर जीवन में तुम्हारे उजाला लाती।
अगर मैं होती नीर, मेरा बहाव न रोक पाते,
पर सूखी धरा की प्यास बुझाती।
अगर मैं होती पवन, स्थिर मुझे न कर पाते,
पर जीवन में तुम्हारे शीतलता लाती।
अगर मैं होती कलम, मेरी ताकत को भेद न पाते,
पर जीवन में तुम्हारे बदलाव लाती।
पर मालिक ने मुझे एक औरत बनाया,
और तुमने मुझ पर निरंतर ज़ुल्म ढाया।
अगर, बस अगर मैं एक बेजान चीज़ होती
तुम मुझे कष्ट न दे पाते
मैं फिर भी तुम्हारे काम आती,
मैं फिर भी तुम्हारे काम आती ।।