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Mamta Rani

Romance

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Mamta Rani

Romance

अधिकार क्यों करूँ

अधिकार क्यों करूँ

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दिल नासाज है, किस हक से तुझपर अधिकार क्यों करूँ

विह्वल, विचलित है मन, पर दिल से तुझे पुकार क्यों करूँ

मन भागता ही रहा हरदम ,डूबते सूर्य की लालिमा के पीछे

उदय की आस में, रहता मन ,हर पल तेरा इंतजार क्यों करूँ

हर खुशी अधूरी -अधूरी है, बिन तेरे कभी नहीं पूरी है

खुशियों को पाने की जीवन में, मैं ही मनुहार क्यों करूँ

छोड़ गए थे निर्जन वन में खोते हुए ,बिना किसी सहारे

साथ मेरे थे तुम ,कैसे खुद में ये स्वीकार क्यों करूँ

शून्य, एकाकी जब जीवन की उत्साह को निगल गए

साथ मिला नहीं यही गिला, इससे इनकार क्यों करूँ



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