अचरज
अचरज
मिले तुम वर्षों बाद, सोचा भूल गये होगे,
मिलूं कि न मिलूं, इस उधेडबुन मे थी,
देखा ब्याकुल फिरते तुमको इधरउधर,
हिम्मत जुड़ा कर आई पास तेरे थी।
एक सैलाब मेरी आंखों मे उमडा था,
धडकने तेज थीं, बमुश्किल सम्भाला था।
सोचा था भूल गये होगे मसरुफियत मे,
अचरज तुम्हें, अब भी सब याद था।
कहां कहां रही, ये भी पता रखा था,
मुझ नाचीज़ को अब भी संजोए रखा था।
न जाने कब आ गई फिर से बिछडऩे की बेला,
खुशी थी इस बार तू खो कर था मिला।

