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Salil Saroj

Abstract

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Salil Saroj

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अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना

अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना

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अच्छा था मेरे दर से मुकर जाना तेरा

आसमाँ की गोद से उतर जाना तेरा


तू लायक ही नहीं था मेरी जिस्मों-जाँ के

वाजिब ही हुआ यूँ बिखर जाना तेरा


मेरी हँसी की कीमत तुमने कम लगाई

यूँ ही नहीं भा गया रोकर जाना तेरा


तुझे हासिल थी बेवजह दौलतें सारी 

अब काम आया सब खोकर जाना तेरा


क्या आरज़ू करूँ तेरी तंगदिली से मैं

क्या दे पाएगा बेवफा होकर जाना तेरा


मैं सोचती रही कि हो जाऊँ तेरी फिर से

बुत बना गया हर बात पे उखड़ जाना तेरा।


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