अबला
अबला
ज़िन्दगी बदलते देर नहीं लगी ,थी अवाक्
क्या से क्या हो गया ,कैसा यह क्रूर मज़ाक
देखते ही देखते ढह गए किले उम्मीदों के
पलक झपकते ही कट गए पंख परिंदों के
सपने जो मिल कर देखे मिल गए मिट्टी में
झुलसना होगा अकेले मुझे जीवन की भट्टी में
बागडोर संभालनी होगी मुझे अपने जीवन की
थामनी होगी डोर विश्वास और परिवर्तन की
पढ़ी लिखी हूं ,काबिल हूं, है क्षमता इतनी
ख़ुद को संभालू,परिवार को दूं शक्ति इतनी
कि नज़र न आए किसी को अबला यहां
सहानुभूति देने वाले भी शरमा जाएं जहां
कहती है यह दुनिया,औरतों को ह
ै ज़रूरत सहारे की
मैं मानती हूं , उन सबको है ज़रूरत जवाब करारे की
जब तक मैं दिखूं निर्बल ,ग़मगीन,आंखों में आंसू जार जार
क्यों रहेंगे पीछे वह जो करने निकले अबलाओं का उद्धार
न आंसू ,न आहें, न शिकवा ,न शिकायत है मेरी फ़ितरत
बाहें पसार लेने को तैयार जो भी देगी मुझे मेरी किस्मत
मगर हाथ नहीं फैलाऊंगी किसी के आगे कभी
है यही संकल्प मेरा, है यही श्रद्धा, आस्था भी
है यही अटूट विश्वास मेरे जीवन का आधार
ज़िंदगी देगी साथ उसी का जो माने न कभी हार।
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