अभिशाप या आशीष विवाह
अभिशाप या आशीष विवाह
विवाह की वेदी पर हुआ
नारी का ही हर बार बलिदान,
सीता की हुई अग्नि परीक्षा
फिर भी त्यागी गई बेसहारा,
वनों में रही बहुत दुःख पाये
लव- कुश को पाल ,धरा में समाई।
निरपराध तजा सती जैसी नारी को
जो यज्ञ- कुण्ड में जा भस्म हुई,
सीता ,सती आदर्श समझी जातीं
इस पुरुष प्रधान जगत् में,
पर क्या यह आत्महत्या नहीं थी
एक पृथ्वी में ,एक यज्ञाग्नि में समाई।
गौतम पत्नी अहिल्या बेचारी
निरपराध ही मारी गई,
दोष पुरुष का ,सजा नारी को हुई
प्रस्तर प्रतिमा बन रहना पड़ा,
इतिहास गवाह है इस बात का
हर बार नारी ही छली गई।
पुरुष चाहे जितनी पत्नियॉं रखे
चाहे जैसा भी मनमाना व्यवहार करे,
सहना नारी को ही है
सब कुछ सहकर भी पुरुष की
वंश बेल नारी को ही बढ़ानी है
उसमें भी वह पराधीन ही है।
विवाह से नारी को क्या मिला
विवाह के बाद भी सुरक्षा नहीं,
घर की सारी ज़िम्मेदारी नारी की
फिर भी उसको कोई श्रेय नहीं,
उसका काम कोई काम नहीं
वह पराश्रित ही समझी जाती।
सच है पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
फिर भी नारी विवाह बन्धन में बंधती,
देश के नौनिहालों के जन्म देती
उनकी परवरिश में अपना समय देती,
पर अब नयी बयार बहने लगी है
सधे कदमों से नारी आगे बढ़ने लगी है।
जमाना पलट रहा है जागरूक नारी से
नारी को अपना अधिकार लेना होगा,
वह भोग्या नहीं ,बराबर की साथी है
वह जड़ मति नहीं कुशाग्र मति है,
उसके बारे में नजरिया बदलना होगा
उसको सम्मान से जीने देना होगा।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर,
जीजा बाई ,सावित्रीबाई फुले
ये सब जगमगाते नाम हैं, इतिहास बनाया है,
विकट परिस्थितियों में इन्होंने जो किया
वह श्लाघनीय चिरस्मरणीय है।
