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Ajay Amitabh Suman

Romance

1.7  

Ajay Amitabh Suman

Romance

अभिलाषा तुम बहुत खूबसूरत हो

अभिलाषा तुम बहुत खूबसूरत हो

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तुम्हे पता है अभिलाषा,

तुम कितनी खुबसूरत हो,

देखना हो तो ले लो मेरी आँखे,

कि चलती फिरती अजंता की मूरत हो,

तुम बहुत खुबसूरत हो।


पलकों के ख्वाब हो तुम,

फूलों के पराग हो तुम,

गाती जो गीत कोयल,

वो गीत लाजवाब हो तुम।


चाँदनी चिटकती रातों में

और मदहोशी छा जाती है,

ऐसी मनोहारी मुहुर्त हो,

सच में तुम बहुत खुबसूरत हो।


जैसे चाँद बिना चकोर कहाँ,

बिन बादल के मोर कहाँ,

जैसे मीन नहीं बिन नीर के,

और धनुष नहीं बिन तीर के।


जैसे धड़कन का आना जाना,

आश्रित रहता है साँसों पे,

ऐसी मेरी जरुरत हो,

अभिलाषा तुम बहुत खुबसूरत हो।


मैं गरम धूप, तू शीतल छाया,

मैं शुष्क बदन, तू कोमल काया,

क्यूँ कर के ये मैं कह पाऊँ,

तू बन जाओ मेरा साया।


मरुभूमि के प्यासे माफिक,

मारा मारा मैं फिरता हूँ,

जो एक झलक से बुझ जाये

ऐसी मोहक तुम सूरत हो।

सचमुच बहुत खुबसूरत हो।


तेरा रूप अनुपम ऐसा कि,

शब्द छोटे पड़ जाते हैं,

ऐसी देहयष्टि तेरी कि,

अलंकार विवश हो जाते हैं।


बस यह के चुप होता हूँ,

नयनों से दिल पे राज करे,

ऐसी शिल्पकार की मूरत हो,

अभिलाषा तुम बहुत खूबसूरत हो।।


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