अब्बा - अम्मी
अब्बा - अम्मी


साल भर में सात दिन दे पाता हूँ उसे ,
उसकी ममता की तड़प मैं देख पाता हूँ,
मगर मैं इसीलिए आँसू नहीं रोकता,
क्योंकि मैं मर्द हूँ और मर्द को दर्द नहीं होता ,
ऐसी अवधारणा में फिट बैठना है मुझे ,
बस इसीलिए आँसू रोकता हूँ,
कि कहीं उसे और न कमजोर कर दूँ मैं,
वो भी मजबूत बनने का ढोंग बड़ा
अच्छा करती है,
क्योंकि उसे मुझे इस ढोंगी समाज के सामने
लायक साबित करना है,
और यहाँ भी वो मेरे बारे में ही सोच रही है,
थोड़े से स्टेटस और चंद कौड़ियों के लिए,
वो अपने जिगर के टुकड़े को खुद से
अलग कर रही,
और मैं भी सब समझते हुए कुछ
नहीं कर पाता,
एक बड़ी पुरानी कहावत सुनी थी,
कि पेट की भूख आदमी से क्या क्या
नहीं कराती ,
पर पैदा होने से आज तक वो भूख मुझे
महसूस नहीं होने दिया,
एक शख्स है जिसने मुझे कभी एक
टाइम की रोटी के लिए,
मोहताज नहीं होने दिया,
उस पिता के बारे में मैं क्या ही लिख पाउँगा ,
जो आज भी अपनी हड्डियाँ गला कर मेरी
जरूरतें पूरी करता है, आज भी देखता हूँ,
जब छोटे बच्चे जो अपने पापा का हाथ
पकड़ के चलते है ,
मुझे भी अपना बचपन याद आ जाता है,
और दिल भर जाता है,
कोई औरत जब अपने बदमाश बच्चे को
थप्पड़ मारने के बाद,
उसे सीने से लगा कर अपने आँचल से
उसके आंसू पोंछती है,
तो मेरी ऑंखें खुद-ब- खुद नम हो जाती है,
कोई बच्चा जब डर के मम्मी चिल्लाता है
तो मुझे भी अपनी माँ की कमी सताती है,
पर मैं डरता नहीं हूँ,
दूर - दूर अकेले चले जाता हूँ,
कैरियर की इस दौड़ में,
इन ऊँची इमारतों में कही खो गया हूँ,
जिससे मैं खुद भी नहीं निकलना चाहता हूँ,
ना ही वो खुद निकालना चाहते हैं,
और शायद अब मैं भी इनसे बाहर नहीं
निकल पाऊं,
जब भाई - बहन को डांट के पढ़ाना था,
उन्हें अच्छा बुरा समझाना था,
तो मैं उनसे कोसों दूर भाग आया ,
इसीलिए लगता है कभी कभी
कि मैं खुदगर्ज़ हो गया हूँ,
मगर मैं, माँ - बाबूजी
मैं आज भी लोगों की कदर करता हूँ,
मेहनत और रोटी की कीमत जानता हूँ,
दोस्ती और रिश्ते निभाता हूँ,
लोगों की भावनाएं समझता हूँ,
कितना भी कमजोर या बर्बाद हो गया हूँ,
कितना भी लायक या बर्बाद हूँ,
मैं अच्छा या लायक बेटा बन पाया हूँ या नहीं,
ये नहीं कह सकता,
पर अब्बा - अम्मी मैं आप दोनों को
बहुत प्यार करता हूँ ।