आज़ादी का अमृत महोत्सव
आज़ादी का अमृत महोत्सव
आज़ादी के इस अमृत महोत्सव पर,
भारतभूमि की स्वतंत्र-श्वाँसों की प्राप्ति की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर.
अच्छादित है जो विशाल हिमालय के संरक्षण से,
और शान जिसकी मिटी नहीँ,झुकी नहीँ, मलिन हुई नहीं,गुलामी की बेड़ियों से,
पूर्ण निष्ठा व पावन ह्रदय से नमन करते हम धरती माँ को,
शत- शत प्रणाम उस कर्मभूमि को,निर्मल हो गयी जो जन्म दे के अपने वीर योद्धाओं को.
लहु जिन्होंने बहा के भी, जान की बाज़ी लगा के भी, देशहित को सर्वोपरि रखा अपने ह्रदय में,
दंडवत्त प्रणाम उन सपूतों को,जो लड़े आख़री श्वास तक ताकि हिन्द का नारा अखंड रहे हर भारतीय की ज़ुबान पे.
आज पुनः देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रतिज्ञा लेते हैं हम,
शान से लहरा के औजस्मयी तिरंगे को उसके सम्मान हेतु मर मिट जाने का संकल्प करते हैं हम.
हर -घर -तिरंगा अभियान के साथ, हर ह्रदय में तिरंगा का संकल्प करते हैं हम,
इस महान कर्मभूमि को, अपनी जननी भारतमाता को,पूर्ण निष्ठा से सलाम करते हैं हम.
"जय जवान जय किसान" से ले के "भारत माता की जय"का उद्घोष करते हैं हम,
"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" का नारा देने वाले नेताजी का पुनः स्मरण करते हैं हम.
बाल - पाल - लाल की जननी इस हिन्द की धरती की पवित्र रज से तिलक लगाते हैं हम,
अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए जिनके पुत्रों ने,उन माताओं का आभार व्यक्त करते हैं हम.
मेरा देश तो एक नायाब हीरा है, उसके संरक्षण की प्रतिज्ञा लेते हैं हम,
भारत के हम वासी हैं, भारत हमारे ह्रदय में सर्वदा-व्यापी रहेगा , ये जयघोष अब करते हैं हम.
जय हिन्द जय भारत.
