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Ravikant Raut

Inspirational

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Ravikant Raut

Inspirational

आवारापन

आवारापन

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मैं अकेला, अनचिन्हा, गुमनाम

न घर, न परिवार,

न कोई काम, न कोई यार


ज़रुरत ही नहीं पड़ती

मुझे इनकी

मैं रहता हूँ

किसी और के ज़िस्म में


सोता हूँ एक रात एक ज़िस्म में

तो जागता हूँ सुबह

किसी और के ज़िस्म में


फिर उस दिन के लिये मैं

वही हो कर रह जाता हूँ

जैसा वो शख्स होता है


क्योंकि मेरी पहुँच

उसकी याददाश्त तक

होती है


इस तरह वो दिन

ग़ुज़र जाता है

फिर अगला दिन

अगला ज़िस्म


इसलिये कभी

जरुरत नहीं पड़ती

किसी पक्के ठिकाने की


एक

सुबह मैं,

एक लड़की के

जिस्म में जागा..और...


वहीं उलझ कर रह गया

वजह ?

उसने मुझे अपने जीने का

सबब बना लिया था


तब मैंने खुद को पहचाना

मेरा भी एक नाम है, ‘उम्मीद’

बेशक वो टूटे ख़्वाबों की

एक उजड़ी ठंडी भट्टी थी


पर आस की साँस

अभी टूटी नहीं थी

मैं एक न बुझने वाली

आँच बनकर

समा गया उसके सीने में


‘उम्मीद’ अकेली हो

पर उसे संग रखो तो

वो कभी अकेला

नहीं छोड़ती तुम्हें


बस यही वजह थी

मैंने कैद हो जाने दिया

खुद को उसके भीतर

भुला कर अपना आवारापन।।


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